भील जनजाति हिंदी में । Bhil Janjati in Hindi

आज इस लेख के माध्यम से आपको ” भील जनजाति “ के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। अगर आप भी किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो ये लेख केवल आपके लिए ही है–

भील जनजाति का परिचय

मीणा जनजाति के बाद भील राज्य की दूसरी सर्वाधिक बड़ी जनजाति है। भील शब्द द्रविड़ भाषा के बील’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है ‘तीर-कमान’। भीलों का मुख्य अस्त्र तीर-कमान ही है। इस प्रकार धनुष-बाण चलाने में प्रवीण होने के कारण ही संभवतया यह जाति भील नाम से प्रसिद्ध हुई।

आज भी भीलों का प्रमुख अस्त्र तीर-कमान ही है। कर्नल जेम्स टॉड ने भीलों को ‘वनपुत्र’ कहा है। भील राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है। महाभारत में भीलों को निषाद कहा जाता था। वैसे राजस्थान के अधिकांश जिलों में भील आबादी कमोबेश पायी जाती है परन्तु दक्षिणी राजस्थान के बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ एवं सिरोही जिलों में इनका बाहुल्य है।

2011 की जनगणना के अनुसार बाँसवाड़ा जिले में भीलों की आबादी सर्वाधिक है। इसके बाद डूंगरपुर एवं उदयपुरजिले का स्थान है राज्य में भीलों की कुल आघादी 41 लाख के लगभग है जो कुल जनजाति का 44.38 प्रतिशत है।

भील जनजाति की विशेषताएं

भील समाज से संबंधित प्रमुख विशेषताएं निम्न है –

• भीलों के घर ‘टापरा’ या ‘कू’ कहलाते हैं। टापरा के बाहर बने बरामदे ‘ढालिया’ कहलाते हैं।

• भीलों के गाँव का मुखिया पालवी/तदवी’ कहलाता है तथा भीलों के सभी गांवों की पंचायत का मुखिया गमेती’ कहलाता है।

• सामान्यत: भीलों में बाल-विवाह प्रचलित नहीं है।

• विधवा विवाह प्रचलन में है लेकिन छोटे भाई की विधवा को बड़ा भाई अपनी पत्नी नहीं बना सकता।

• भीलों में रोगोपचार की विधि डाम देना प्रचलित है।

• शिकार, वनौपज का विक्रय तथा कृषि इनकी आजीविका के मुख्य साधन है।

भील जनजाति के मेले ओर त्यौंहार

भील जनजाति के मुख्य मेले ओर त्यौंहार निम्न है–

  • बेणेश्वर मेला
  • घोटिया अंबा मेला

भील जनजाति की वेशभूषा

भील पुरुषों के वस्त्र :–

• फेंटा : सिर पर बाँधा जाने वाला लाल /पीला/ केसरिया साफा।

• पोत्या : सिर पर पहने जाने वाला सफेद साफा।

• लंगोटी (खोयतू): कमर में पहने जाने वाला वस्त्र।

• ढेपाड़ा (ठेपाड़ा): पुरुषों द्वारा कमर से घुटनों तक पहने जाने वाली तंग धोती।

• अंगरखी बण्डी कमीज, कुर्ता : बदन पर पहनने का वस्त्र।

• फालू : कमर रखे जाने वाला अंगोछा।

भील स्त्रियों के वस्त्र:

  • कछावूः स्त्रियों द्वारा घुटनों तक पहना जाने वाला घाघरा।
  • सिंदूरी : स्त्रियों की लाल रंग की साड़ी।
  • पिरिया : भील समाज में दुल्हन द्वारा पहने जाने वाला पीले रंग का लहंगा।
  • परिजनी : भील महिलाओं द्वारा पैरों में पहनने की पीतल की मोटी चूड़ियाँ ।
  • ओढ़नी : स्त्रियों की साड़ी। तारा माँत की ओढ़नी आदिवासी महिलाओं की लोकप्रिय ओढ़नी है। ओढ़नी को लूगड़ा भी कहते।

भीलों से संबंधित शब्दावली

  • टोटम : भीलों का कुल देवता। भील समुदाय पशु-पक्षी एवं पेड़-पौधों को पवित्र मानते हैं एवं उनकी टोटम के रूप में पूजा करते हैं।
  • फाइरे-फाइरे: भील जनजाति द्वारा शत्रु से निपटने हेतु सामूहिक रूप से किया जाने वाला रणघोष। ढोल बजने या किलकारीमारने पर सभी लोग अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर फाइरे के घोष के साथ एक स्थान पर इकट्ठे हो जाते हैं।
  • भील आदिवासियों द्वारा मैदानी भागों को जलाकर की जाने वाली खेती (झूमिंग कृषि) को झूमटी (दजिया) कहते हैं।
  • चिमाता : पहाड़ी ढलानों पर की जाने वाली झूमिंग कृषि को भील लोग चिमाता या वालरा कहते हैं।
  • भील जनजाति निडर, साहसी, स्वामीभक्त तथा शपथ की पक्की होती है। भील लोग केसरियानाथ जी (कालाबावजी याकालाजी या ऋषभदेव जी) के चढ़ाई गई केसर का पानी पीकर कभी भी झूठ नहीं बोलते हैं।
  • फलाः भील घरों का एक मोहल्ला फला कहलाता है।
  • पाल: भीलों के कई फला का समूह (या गाँव) पाल कहलाता है, जैसे नाथरा की पाल। पाल का मुखिया पालवी कहलाता है।लोकानुरंजन : गैर, ढेकण, युद्ध नृत्य, द्विचकी नृत्य, घूमरा नृत्य, गवरी नृत्य, नेजा आदि भीलों के प्रसिद्ध नृत्य हैं।
  • भील समुदाय का खान-पान : इनके भोजन में मुख्य रूप से मक्का की रोटी तथा प्याज (कांदे) का साग होता है। मक्का उसक्षेत्र में बहुतायत से होती है। भील लोग महुआ की शराब तथा ताड़ का रस बड़े शौक से पीते हैं।
  • आजीविका के साधन: भील समुदाय की आजीविका का प्रमुख साधन कृषि, शिकार एवं वनों से प्राप्त उत्पाद हैं। ये पहाड़ी वमैदानी क्षेत्रों में पेड़-पौधों को साफ कर स्थानांतरित कृषि- वालरा कृषि (झूमिंग कृषि) करते हैं।
  • हाथी मना : विवाह के अवसर पर भील पुरुष द्वारा घुटनों के बल बैठकर तलवार घुमाते हुए किया जाने वाला नृत्य।
  • हाथी वैण्डो प्रथा : भील समाज में प्रचलित अनूठी वैवाहिक परम्परा जिसमें पवित्र वृक्ष पीपल, साल, बाँस एवं सागवान के पेड़ोंको साक्षी मानकर हरज व लाडी (दूल्हा-दुल्हन) जीवन साथी बन जाते हैं।
  • बैणेश्वर मेला : दूंगरपुर में माही, सोम एवं जाखम नदियों के संगम पर बेणेश्वर धाम में माघ पूर्णिमा को आयोजित मेला जो आदिवासियों का कुंभ कहलाता है।
  • भीलों में विवाह की सह-पलायन प्रथा विद्यमान है, जिसमें लड़के-लड़की भागकर 2-3 दिन बाद वापस आते हैं। तब गाँवों के लोगों द्वारा एकत्रित होकर उनके विवाह को मान्यता प्रदान कर दी जाती है। इसे अपहरण विवाह भी कहते हैं।
  • भीलों की भाषा ‘बागड़ी या भीली’ कहलाती है। यह भाषा मेवाड़ी एवं गुजराती भाषाओं से प्रभावित है।
  • भीलों में कुटुम्ब प्रथा विद्यमान है। परिवार पितृसत्तात्मक होते हैं।
  • घोटिया अम्बा मेलाः बाँसवाड़ा के घोटिया अम्बा स्थान पर भरने वाला भीलों का प्रसिद्ध मेला
  • गवरी (या राई): यह भीलों का प्रसिद्ध लोक नाट्य है जो राखी के दूसरे दिन से प्रारंभ होकर चालीस दिन तक चलता है। यह राज्य का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है।
  • गैर नृत्य : फाल्गुन मास में होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य। होली भीलों का प्रमुख त्यौहार होता है।
  • भील समुदाय में सामाजिक सुधार एवं जनजाग्रति उत्पन्न करने में संत मावजी, गुरु गोविन्द गिरी, श्री मोतीलाल तेजावत, भोगीलाल पाण्ड्या, श्री माणिक्य लाल वर्मा एवं सुरमल दास जी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। गुरु गोविन्द गुरु ने ही भीलों में भगत पंथ का प्रारंभ किया था।
  • प्रसिद्ध लेखक रोने ने अपनी पुस्तक ‘Wild Tribes of India’ में भीलों का मूलनिवास मारवाड़ बताया है।
  • भगत: भील जनजाति में धार्मिक संस्कार सम्पन्न करवाने वाला व्यक्ति ‘भगत’ कहलाता है।

भील जनजाति से संबंधित प्रश्नोत्तरी

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